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द गर्ल इन रूम 105–५

तोड़ने के लिए कमर कसे हुए हैं।

उसने अपनी स्पीच ख़त्म की और हिकारत से अपने नोट्स को परे फेंक दिया। फिर उसने कुछ इस अंदाज में अपनी गर्दन हिलाई मानो कह रहा हो, आखिर हम इस विषय पर डिबेट भी किसलिए कर रहे हैं?

तालियां गूंज उठीं। मेरा दिल बैठ गया। तो क्या जारा डिबेट हार जाएगी? सभी की आंखें जारा की ओर घूम गई। उसने तालियों की खत्म होने का इंतजार किया और फिर अपनी बात शुरू की-

मालूम होता है, मेरे प्रतिपक्षी को संविधान की अच्छी जानकारी है, इसके लिए तो उन्हें बधाई ही दी

जानी चाहिए, जारा ने कहा इंदर मुस्करा दिया।

बहरहाल, साथियो, हम यहां पर इस बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं कि क्या नहीं है और क्या

गलत यह नहीं कि संविधान में क्या लिखा है, जो कि कोई भी दो सैकंड में गूगल करके जान सकता है।"

श्रोताओं की रीढ़ बन गई। यह लड़ाई इतनी आसानी से खत्म नहीं होने जा रही थी।

जारा ने अपनी बात जारी रखी- यह सच है कि संविधान हमारे प्रजातंत्र का आधार है, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसमें कोई संशोधन नहीं हो सकता। इससे पहले भी संविधान में संशोधन होते रहे हैं।'

हॉल में सम्राटा छा गया। 'तो यहां पर सवाल यह नहीं है कि संविधान में क्या लिखा गया है, सवाल यह है कि संविधान में क्या

लिखा जाना चाहिए, उसने कहा। “येस, सुपर्व, शाबाश!" मैं जोर से बोल पड़ा। मेरी आवाज पूरे हॉल में गुज उठी। डैम, मुझे तो लग रहा था बाकी लोग भी मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाएंगे। पूरा हॉल मेरी तरफ देख रहा था, खुद जारा लोन की नजरें मुझ पर आ टिकी थीं।

'शुक्रिया, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कराई, लेकिन इसे बाद के लिए बचाकर रखिए।' कोई पांच सौ लोगों से भरा हॉल ठहाका लगाकर हंस पड़ा। माहौल में छाई हुई गंभीरता थोड़ा कम हुई, लेकिन मैं थोड़ा तनाव में आ गया। मैं चाहता था कि ठीक उसी समय बिजली गुल हो जाए और पूरे हॉल में अंधेरा छा जाए, ताकि मैं चुपचाप वहां से निकल सकू। जारा ने अपनी बात जारी रखी--

'बहरहाल, मेरे दोस्त ने अनुच्छेद 25 को आंशिक रूप से ही फोट किया है। अनुच्छेद 25 यह जरूर कहता है

कि सभी को धर्मपालन की आजादी है, लेकिन वह यह भी कहता है कि यह आज़ादी निर्वाध नहीं है और वह लीक- व्यवस्था सार्वजनिक नैतिकता और जन स्वास्थ्य के मानकों के प्रति उत्तरदायी है। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मेरे

विद्वान प्रतिपक्षी इस बिंदु का उल्लेख करना भूल गए। 'तो, अगर लोगों को होने वाली असुविधा का ही प्रश्न है, इंदर ने जारा को बीच में ही टोकते हुए कहा, तब एक मुस्लिम होने के नाते क्या आप लाउडस्पीकर्स से दिन में पांच बार अज्ञान पर पाबंदी लगाने की बात भी

'बिलकुल कहूंगी।" पूरे सभागार ने जैसे एक ठंडी आह भरी। एक मुस्लिम लड़की स्टेज पर होने के बावजूद ऐसा कह रही थी।

लेकिन ज़ारा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने अपनी बात जारी रखी-

'आप अजान के बिना भी दिन में पांच बार नमाज पढ़ सकते हैं। हो सकता है कोई एप्प आपको अपने फोन पर दिन में पांच बार इसकी याद दिला दे। या आप चाहें तो हेडफोन पर जो सुनना चाहे सुन सकते हैं। लेकिन इसे सभी पर क्यों थोपना? वैसे मुझे खुशी होगी अगर आप मुझे एक मुस्लिम लड़की की तरह संबोधित करना बंद करेंगे। मैं यहां पर एक मुस्लिम की तरह नहीं आई है, मैं यहां पर क्लैश ऑफ़ द टाइट डिबेट कॉम्पिटिशन की

फाइनलिस्ट की तरह आई हूँ।" इस बार वो तालियां गड़गड़ाई कि सभी आवाजें उनमें दब गई। कुछ मिनटों के बाद जजिंग पैनल में से एक फैकल्टी मेंबर स्टेज पर गए और फ़ैसला सुनाया-

'आज की डिबेट बहुत ही अच्छी रही। ये सच है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ही धार्मिक आस्था के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाने के पक्ष में अपनी बात रखना बहुत मुश्किल है। इस नज़रिए से देखें तो मिस जारा के सामने एक कठिन चुनौती थी, लेकिन उन्होंने बहुत ही संगत रूप से और तर्कपूर्ण तरीके से अपनी बात रखी। इसलिए मिस जारा लोन को इस साल की विजेता घोषित किया जाता है।"

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